पकोड़े पर चर्चा पिछले कुछ दिनों से पकोड़े जबरदस्त चर्चा में चल रहे हैं। पहले सिर्फ चाय वाला कहने पर ही दुकानदार का सीना तन कर 50-55 इंच का हो जाता था पर अब तो पकोड़े वाला शब्द भी रोजगार का प्रतीक बन कर उभर गया है। दो बातेें जो आजकल बहुत चर्चा में हैं वो हैं पकोड़ें और भगोड़े। ये दोनों जीवन के इस्टेबलिशमेन्ट के तरीके हैं। बेरोजगार रोजगार के लिए परेशान हो तो बिना सरकार को गलियाए अगर वो एक ठेला खोलकर पकोड़े बेचना शुरू कर दे तो वो खुद को सफल रोजगारी व्यक्ति मान सकता है और सरकार भी इसे आपनी सफलता मान लेगी। वहीं अगर आप में टेलंेट की मात्रा औरों से ज्यादा हो तो आप किसी राज्य सरकार के बजट से ज्यादा का सिर्फ लोन लेकर विदेश में आराम से सेटल हो सकते हैं। शर्त सिर्फ इतनी है कि आप पर ‘भगोड़ा‘ टाइटल का ताज पहना दिया जायगा और वैसे भी आजकल तो भगोड़ा कहलाना भी हमारे सोशल स्टेटस को बढाता ही है। जब विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे अरबपति सेलेब्रिटी भगोड़ों की लिस्ट में हैं तो भगोड़ा कहला के इनकी जमात में षामिल होने पर किसी को विशेष एतराज नही...