पकोड़े पर चर्चा
पिछले कुछ दिनों से पकोड़े जबरदस्त चर्चा में चल रहे हैं। पहले सिर्फ चाय वाला कहने पर ही दुकानदार का सीना तन कर 50-55 इंच का हो जाता था पर अब तो पकोड़े वाला शब्द भी रोजगार का प्रतीक बन कर उभर गया है। दो बातेें जो आजकल बहुत चर्चा में हैं वो हैं पकोड़ें और भगोड़े। ये दोनों जीवन के इस्टेबलिशमेन्ट के तरीके हैं। बेरोजगार रोजगार के लिए परेशान हो तो बिना सरकार को गलियाए अगर वो एक ठेला खोलकर पकोड़े बेचना शुरू कर दे तो वो खुद को सफल रोजगारी व्यक्ति मान सकता है और सरकार भी इसे आपनी सफलता मान लेगी। वहीं अगर आप में टेलंेट की मात्रा औरों से ज्यादा हो तो आप किसी राज्य सरकार के बजट से ज्यादा का सिर्फ लोन लेकर विदेश में आराम से सेटल हो सकते हैं। शर्त सिर्फ इतनी है कि आप पर ‘भगोड़ा‘ टाइटल का ताज पहना दिया जायगा और वैसे भी आजकल तो भगोड़ा कहलाना भी हमारे सोशल स्टेटस को बढाता ही है। जब विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे अरबपति सेलेब्रिटी भगोड़ों की लिस्ट में हैं तो भगोड़ा कहला के इनकी जमात में षामिल होने पर किसी को विशेष एतराज नहीं होना चाहिये। गरीब आदमी या किसान भगोड़ा बनकर भागेगा भी तो कहां, और लोन ले भी कितना लेगा, ज्यादा से ज्यादा 8-10 लाख, और वो भी नहीं दे पाया तो षर्म से आत्महत्या ही कर लेगा। बड़े लोगों की बड़ी बात, लोन भी लेना है तो 5-10 हजार करोड़ से कम नहीं लेना है। और फिर उनका क्या है झोला उठा के कही भी चल दो, विदेश वगैरह। लोन एन पी ए में चला जायेगा। और बैंक को इस घाटे से उबारने की बात है तो उसके लिए हैं तो सही हमारे बैंक एकाउन्ट्स के मिनिमम बैलेंस पर कटौती। बैंको का मिनिमम बैलेंस एमाउन्ट 5000 रू से बढा कर 8-10,000 रू कर दीजिये फिर देखिए कैसे गरीब जनता से तुरन्त रिकवरी होती है इन बड़े बड़े घोटालों की राशि की।
इस बार बजट में गरीब जनता को राहत देते हुए कुछ पदों पर मानदेय में इजाफा करते हुए राश्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे पदों पर मानदेय में भारी वृद्धि कर दी है जिससे जनता में ख्ुाशी की लहर दौड़ गयी है। यह जनता को कड़ी मेहनत करने को प्रेरित किये जाने की ओर एक सफल कदम है, ताकि वो भी मेहनत करें और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल बनने के लिए प्रयास करें। वरना पकोड़े तो हैं ही तलने और खाने के लिए।
वैसे आजकल हमारे देश में वर्तमान से ज्यादा चर्चा इहिास पर होती रहती है, जैसे की अगर ये हुआ होता तो वैसा ना होता, अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन गये हेाते तो ऐसा होता, नेहरू न बने होते तो वैसा होता, गांधी न होते तो ये हो जाता। तो भाई ऐसे तो सीता हरण ना होता तो रामायण ही ना होती, यूधिष्ठिर जुआ ना खेलते तो महाभारत युद्ध ही नहीं होता, सिद्धार्थ राजमहल न छोड़ते तो गौतम बुद्ध नहीं बनते, मोदी जी जशोदाबेन के साथ होते तो विदेश यात्राओं में उन्हें भी साथ ले जाते और साथ में छोटा विकास भी होता, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा सफल हो जाती तो वही प्रधानमंत्री बन जाते। ऐसी ही ना जाने कितनी, असंख्य कपोल कल्पनाऐं हैं जो हम सोच सोच कर सर खुजा सकते हैं और वर्तमान की समस्याओं को भुला कर अतीत को बदलने पर रोते हुए वर्तमान की समस्याओं को दबा सकते हैं। वैसे भी समस्या के हल का एक तरीका ये भी है कि एक दूसरी बड़ी समस्या को लाकर खड़ी कर दी जाये। जैसे पहले गरीबों की समस्या थी की उन्हें राशन सही समय पर नहीं मिल रहा है पर उसके हल के लिए अब दूसरी बड़ी समस्या ये है कि- ‘बैंक में खाता खुल गया है अब उसमें पैसे मिनिमम बैलेंस से कम ना हो जायें वरना बैंक हमारे पैसे काटना षुरू कर देगा। अब कहीं से भी व्यवस्था करो पर बैंक एकाउंट में 5000 से अधिक पैसे रखो क्योंकी बैंक में सब्सिडी भी आनी है। अगर सब्सिडी चाहिये तो कैश पैसे भी रखो ताकि नकद भुगतान हो और बैंक एकाउंट में भी पैसे कम मत होने दो नहीं तो बैंक पैसे काट लेगा।‘ इन सब को अगर आपने बैलेंस कर लिया तो हिंदू मुस्लिम, सरदार पटेल, सावरकर, गोडसे, गांधी, कश्मीर, जेएनयू, लव जेहाद और भी जाने कितनी समस्याऐं हैं जिनके सामने आपको अपनी समस्या तुच्छ लगने लगेगी। देशभक्ति के लिए क्या आप बेरोजगार भी नहीं रह सकते। लानत है भूख लगने पर रोटी रोटी चिल्लाने लगते हो, देशद्रोही कहीं के।
पिछले कुछ दिनों से पकोड़े जबरदस्त चर्चा में चल रहे हैं। पहले सिर्फ चाय वाला कहने पर ही दुकानदार का सीना तन कर 50-55 इंच का हो जाता था पर अब तो पकोड़े वाला शब्द भी रोजगार का प्रतीक बन कर उभर गया है। दो बातेें जो आजकल बहुत चर्चा में हैं वो हैं पकोड़ें और भगोड़े। ये दोनों जीवन के इस्टेबलिशमेन्ट के तरीके हैं। बेरोजगार रोजगार के लिए परेशान हो तो बिना सरकार को गलियाए अगर वो एक ठेला खोलकर पकोड़े बेचना शुरू कर दे तो वो खुद को सफल रोजगारी व्यक्ति मान सकता है और सरकार भी इसे आपनी सफलता मान लेगी। वहीं अगर आप में टेलंेट की मात्रा औरों से ज्यादा हो तो आप किसी राज्य सरकार के बजट से ज्यादा का सिर्फ लोन लेकर विदेश में आराम से सेटल हो सकते हैं। शर्त सिर्फ इतनी है कि आप पर ‘भगोड़ा‘ टाइटल का ताज पहना दिया जायगा और वैसे भी आजकल तो भगोड़ा कहलाना भी हमारे सोशल स्टेटस को बढाता ही है। जब विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी जैसे अरबपति सेलेब्रिटी भगोड़ों की लिस्ट में हैं तो भगोड़ा कहला के इनकी जमात में षामिल होने पर किसी को विशेष एतराज नहीं होना चाहिये। गरीब आदमी या किसान भगोड़ा बनकर भागेगा भी तो कहां, और लोन ले भी कितना लेगा, ज्यादा से ज्यादा 8-10 लाख, और वो भी नहीं दे पाया तो षर्म से आत्महत्या ही कर लेगा। बड़े लोगों की बड़ी बात, लोन भी लेना है तो 5-10 हजार करोड़ से कम नहीं लेना है। और फिर उनका क्या है झोला उठा के कही भी चल दो, विदेश वगैरह। लोन एन पी ए में चला जायेगा। और बैंक को इस घाटे से उबारने की बात है तो उसके लिए हैं तो सही हमारे बैंक एकाउन्ट्स के मिनिमम बैलेंस पर कटौती। बैंको का मिनिमम बैलेंस एमाउन्ट 5000 रू से बढा कर 8-10,000 रू कर दीजिये फिर देखिए कैसे गरीब जनता से तुरन्त रिकवरी होती है इन बड़े बड़े घोटालों की राशि की।
इस बार बजट में गरीब जनता को राहत देते हुए कुछ पदों पर मानदेय में इजाफा करते हुए राश्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल जैसे पदों पर मानदेय में भारी वृद्धि कर दी है जिससे जनता में ख्ुाशी की लहर दौड़ गयी है। यह जनता को कड़ी मेहनत करने को प्रेरित किये जाने की ओर एक सफल कदम है, ताकि वो भी मेहनत करें और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल बनने के लिए प्रयास करें। वरना पकोड़े तो हैं ही तलने और खाने के लिए।
वैसे आजकल हमारे देश में वर्तमान से ज्यादा चर्चा इहिास पर होती रहती है, जैसे की अगर ये हुआ होता तो वैसा ना होता, अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री बन गये हेाते तो ऐसा होता, नेहरू न बने होते तो वैसा होता, गांधी न होते तो ये हो जाता। तो भाई ऐसे तो सीता हरण ना होता तो रामायण ही ना होती, यूधिष्ठिर जुआ ना खेलते तो महाभारत युद्ध ही नहीं होता, सिद्धार्थ राजमहल न छोड़ते तो गौतम बुद्ध नहीं बनते, मोदी जी जशोदाबेन के साथ होते तो विदेश यात्राओं में उन्हें भी साथ ले जाते और साथ में छोटा विकास भी होता, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा सफल हो जाती तो वही प्रधानमंत्री बन जाते। ऐसी ही ना जाने कितनी, असंख्य कपोल कल्पनाऐं हैं जो हम सोच सोच कर सर खुजा सकते हैं और वर्तमान की समस्याओं को भुला कर अतीत को बदलने पर रोते हुए वर्तमान की समस्याओं को दबा सकते हैं। वैसे भी समस्या के हल का एक तरीका ये भी है कि एक दूसरी बड़ी समस्या को लाकर खड़ी कर दी जाये। जैसे पहले गरीबों की समस्या थी की उन्हें राशन सही समय पर नहीं मिल रहा है पर उसके हल के लिए अब दूसरी बड़ी समस्या ये है कि- ‘बैंक में खाता खुल गया है अब उसमें पैसे मिनिमम बैलेंस से कम ना हो जायें वरना बैंक हमारे पैसे काटना षुरू कर देगा। अब कहीं से भी व्यवस्था करो पर बैंक एकाउंट में 5000 से अधिक पैसे रखो क्योंकी बैंक में सब्सिडी भी आनी है। अगर सब्सिडी चाहिये तो कैश पैसे भी रखो ताकि नकद भुगतान हो और बैंक एकाउंट में भी पैसे कम मत होने दो नहीं तो बैंक पैसे काट लेगा।‘ इन सब को अगर आपने बैलेंस कर लिया तो हिंदू मुस्लिम, सरदार पटेल, सावरकर, गोडसे, गांधी, कश्मीर, जेएनयू, लव जेहाद और भी जाने कितनी समस्याऐं हैं जिनके सामने आपको अपनी समस्या तुच्छ लगने लगेगी। देशभक्ति के लिए क्या आप बेरोजगार भी नहीं रह सकते। लानत है भूख लगने पर रोटी रोटी चिल्लाने लगते हो, देशद्रोही कहीं के।
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