Skip to main content
कहां उड़े रे मन के पंछी, नीचे आजा
कल खबरों में सुना कि ये अमेरिका वाले पाकिस्तान और हमारे बीच में मध्यस्थ्ता कराने की बात कह रहे हैं। अब ऐसे दिन आ गये हैं क्या कि ये हमें सिखायेंगे। कोई इनको बता दो कि हमारे अच्छे दिन चल रहे हैं, जितने का उनका नया आईफोन 11 लांच हुआ है उससे ज्यादा का तो हम अपनी गाड़ियों का ट्रेफिक चालान ही भर रहे हैं, और बोलो ट्रम्प चचा।

तुम रहते होगे मंदी, बेरोजगारी, अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, बेतुके बयान, महंगाई जैसे समस्याओं से दुखी तो ये तुम्हारे दुख तुमको मुबारक , हम इक्कीसवीं सदी के भारत हैं जैसे ही समस्याओं के बारे में विचार आने शुरू होते हैं न्यूज चैनल लगा लेते है। थोड़ी देर में सारे एंकर मिल कर हमको समझा देते हैं कि देशहित में कुछ बलिदान भी करना पड़ता है और आधे घंटे के अंदर ही हमारे सिर से सारी समस्याओं का बोझ हट जाता है और हम एक देशभक्त के रूप में खुद को पाते हैं। क्या आपके देश में हैं इतने समझदार और देशभक्त न्यूज चैनल। बात करते हैं।

परसों एक देशद्रोही कह रहा था कि यार शहर में पार्किंग की पर्याप्त जगहें ही नहीं है तो क्या ये नो पार्किग का इतना ज्यादा चालान ज्यादती नहीं है क्या? हमने भी पूछ लिया सत्तर साल तक क्यूं चुप थे और फिर क्या था सारे देशभक्तों ने लगातार 50-60 मैसेज उसके व्हट्सएप पर नेहरू, गांधी खानदान और पाकिस्तान पर देकर मारे तब जाकर चुप हुआ। और आज तक हमको देखकर रास्ता बदल लेता है।


जैसा कि आपको पता ही होगा पिछले कुछ वर्षों में अधिकांश समस्याऐं लगभग समाप्त हो चुकी है और जो बची हैं वो नेहरू जी और पिछले सत्तर सालों के कारण हैं।। कुछ लागों का तो काम ही होता है चिड़चिड़ाते रहना, उनको बोलने दो। वरना सरकार के पास तो हर समस्या का मौखिक तोड़ है। ये मंदी क्या होती है, ओला और उबर की वजह से लोग गाड़ियां नहीं खरीद रहे हैं, ‘अर्थव्यवस्था का गणित‘ वो क्या होता है, आइंस्टीन ने गुरूत्वाकर्षण बिना गणित के खोजा था, बेरोजगारी ये क्या शब्द है योग्य लोगों को तो रोजगार पाने से कोई नहीं रोक सकता। अब हमारी अर्थव्यवस्था बहीखाते वाली बन चुकी है है, 5 ट्रिलियन की ओर सरकते जा रही है। हमने लक्ष्य बड़ा कर दिया है ये क्या कम है, क्या पिछले सत्तर साल में किया है किसी ने कुछ ऐसा। बजट से पहले माता लक्ष्मी की पूजा भी की थी, क्या आपको लगता है माता लक्ष्मी हमारे देश की अर्थव्यवस्था के साथ ऐसा कर सकती हैं, अगर आपको ऐसा लगता है तो आप माता लक्ष्मी का अपमान कर रहे हैं।

दोबारा विश्व गुरू हम यूं ही नहीं बन रहे हैं नये आयाम गढने पड़ते हैं। हमारी मीडिया सभी देशों को सिखा रही है कि कैसे देश के नागरिको को आम परेशानियों से दूर रखा जाये। जब तक किसी को समस्या बताई ही ना जाये तो वो क्यों परेशान होगा। अगर हमें पाकिस्तान, चीन अमेरिका की समस्याओं के बारे में ही बताया जायेगा तो हम निश्चित रूप से शांत और प्रसन्न रहेंगे क्योंकी अपने नुकसान की तकलीफ दुश्मन के नुकसान देख के थोड़ी कम हो ही जाती है। ये मन की शांति हमें प्रदान करने वाले न्यूज चैनल और कर्मठ एंकर निश्चित रूप से हमारे और सारी दुनिया के लिए गुरू ही हैं, क्योंकी आदमी आखिर मन की शांति ही तो खोज रहा है। टीवी की खबरों और व्हट्सएप के ज्ञान सागर से बाहर जब आदमी असल दुनिया में आता है तो थोड़ा परेशान हो जाता है कि सरकार ने चालान दस गुना कर दिया पर रोड में तो गढ्ढे ही गढ्ढे हैं पर शाम को घर पहुंच कर ज्यें ही वो टीवी खोलता है, न्यूज में देखकर वो खुश हो जाता है कि पाकिस्तान की रोड में और चन्द्रमा की सतह पर तो हमसे भी ज्यादा गढ्ढे हैं। और ये सन्तुष्टि हमें सिर्फ और सिर्फ मीडिया के माध्यम से ही मिल रही है। इसलिए एनडीटीवी को छोड़कर सभी न्यूज चैनल्स को मेरा प्रणाम है जिनके कारण हम एक सफल और सर्वश्रेष्ठ जीवन की कल्पना में जी पा रहे है। मीडिया और फोन से जितना बाहर आप जायेंगे उतना परेशान हो जायेंगे। कक्षा से बाहर जाने पर तो विक्रम आॅर्बिटर भी चन्द्रयान को छोड़कर चल दिया। इसलिए अपने मन को शांत बनाये रखने के लिए न्यूज एंकर्स और व्हट्सएप की दुनिया से निरंतर जुड़े रहें। देशहित में जारी। 

दिग्विजय सिंह जनौटी

Comments

Popular posts from this blog

Bird Watching

हो रहा ये प्रचार है, तू इंसान नहीं अवतार है। संजू बाबा ने मुन्ना भाई में बोला था ‘बोले तो, बेड़ू लोग एक मस्त जादू की झप्पी देने का, सब काम हो जायेगा‘। शायद राहुल गांधी ने भी अपने अटके हुए काम के लिए कई टोटके किये, सारे फार्मूले ट्राई कर लिए, मनमोहन के अर्थशास्त्र से लेकर, दिग्गी के समाजशास्त्र और केजरीवाल के राजनीतिशास्त्र आजमाने के बाद भी जब कोई विशेष सफलता नहीं मिली तो संजू बाबा वाली गांधीगिरी अपनाने का तरीका मन को भा गया। वैसे राहुल जी संजू की हर फिल्म जरूर देखते हैं उनका कहना है ‘‘संजू को लोग बाबा कहकर पुकारते हैं, मुझे भी प्यार से कई लोग बाबा ही कहते हैं तो फिल्म एक बार देखना तो बनता है ना बाबा। फिर मुझे मुन्ना भाई की सबसे अच्छी बात लगी की उसमें गांधीगिरी से काम होता है, अब जबकी मैं तो आॅलरेडी गांधी हूं तो मुझे तो गिरी की जरूरत ही नहीं। जादू की झप्पी का मैं बहुत बड़ा फैन हूं। इसे सीखने में कई वर्ष लगाये हैं तब जाकर मैंने संसद में इसका प्रेक्टिकल किया। और मेरी इस झप्पी परफारमेन्स को मेरे सभी साथियों ने सराहा। सिब्बल साहब और राज बब्बर जी ने तो यहां तक कहा कि ‘ झप्पी देखकर रामाय...