जो जल ना सका, वो रावण दशहरा का माहौल है हर तरफ जै जै श्री राम के भजनों की गूंज है। पुतला दहन के कार्यक्रम से पहले ही खूब शोर शराबा चला है। पटाखे चलने अभी शुरू नहीं हुए हैं पर तैयारी जारी है। अभी थोड़ी देर में इतने सारे पटाखे जलाये जायेंगे जितने हमने शायद अपने जीवन की कुल दिवालियों में मिलाकर भी नहीं जलाये होंगे। जलते पटाखेें के बीच रावण का अंत देखने का मजा ही कुछ और है। दूसरे व्यक्ति के अवगुणों से तो हम वैसे ही बहुत नफरत करते हैं हर अवगुणी व्यक्ति हमारे लिए रावण समान है, अपने अवगुणों को अपनी आदत बता कर एडजस्ट कर लेने की कला भी हमने सीख ली है, पर दुसरों की बुराइयां हम बिल्कुल नहीं बखशते, 10-20 लोगों के सामने बुराई ना बताई तो ये बुराई भी कोई बुराई हुई भला। फिर रावण तो बुराइयों का प्रतीक जो ठैरा। उसे तो भस्म करना जरूरी है। राम जी की कृपा से मैदान में बैठने की थोड़ी जगह मिल गई क्योंकी भीड़ अभी पहुंचनी शुरू हुई है। अभी मेला मैदान को आगंतुकों द्वारा बिस्कुट, नमकीन, चिप्स के खाली रैपर और पानी की खाली बोतलों से जल्द से जल्द कुडेदान बना देने की प्रक्रिया युद्धस्तर से जारी है, पटाखों...