जो जल ना सका, वो रावण
दशहरा का माहौल है हर तरफ जै जै श्री राम के भजनों की गूंज है। पुतला दहन के कार्यक्रम से पहले ही खूब शोर शराबा चला है। पटाखे चलने अभी शुरू नहीं हुए हैं पर तैयारी जारी है। अभी थोड़ी देर में इतने सारे पटाखे जलाये जायेंगे जितने हमने शायद अपने जीवन की कुल दिवालियों में मिलाकर भी नहीं जलाये होंगे। जलते पटाखेें के बीच रावण का अंत देखने का मजा ही कुछ और है। दूसरे व्यक्ति के अवगुणों से तो हम वैसे ही बहुत नफरत करते हैं हर अवगुणी व्यक्ति हमारे लिए रावण समान है, अपने अवगुणों को अपनी आदत बता कर एडजस्ट कर लेने की कला भी हमने सीख ली है, पर दुसरों की बुराइयां हम बिल्कुल नहीं बखशते, 10-20 लोगों के सामने बुराई ना बताई तो ये बुराई भी कोई बुराई हुई भला। फिर रावण तो बुराइयों का प्रतीक जो ठैरा। उसे तो भस्म करना जरूरी है। राम जी की कृपा से मैदान में बैठने की थोड़ी जगह मिल गई क्योंकी भीड़ अभी पहुंचनी शुरू हुई है। अभी मेला मैदान को आगंतुकों द्वारा बिस्कुट, नमकीन, चिप्स के खाली रैपर और पानी की खाली बोतलों से जल्द से जल्द कुडेदान बना देने की प्रक्रिया युद्धस्तर से जारी है, पटाखों के चिथड़े कूड़े के ऊपर अंत में बिखेरे जायेंगे। अब अपना व्यस्त समय निकाल कर हम रावण दहन को आये हैं तो फोकस रावण पर ही करना चाहिये। उस रावण पर जो कि हजारों साल पहले मर चुका है पर जिसे हर साल हम बड़ी मेहनत करके फिर तैयार करते हैं ताकि उसके जलने का मजा हम फिर फिर लूट सकें। अपनी बनाई चीज के जलने और जलाने का आनंद इस मैदान के अलावा शायद ही कहीं और आता हो। वैसे इतना खर्चा पटाखों पर करने से अच्छा मुंह से ठांय ठांय करने वाली यू0पी0 पुलिस को मौका दे देते तो मुंह से ही सारे पटाखों की आवाज निकाल कर शमां बांध देते। खर्चा तो बचता ही प्रदूषण की भी कोई टेंशन नहीं रहती। इतने खर्चीले आयोजकों को कोई तो समझाओ भाई, ये तो यू0पी0 का सारा टेंलेंट ऐसे ही खतम करके ही मानेंगे। अब नगर निगम की होषियारीे ही देख लो जिस दीवार को रंग पुतवाना हो उस पर लिख देते हैं यहां थूकना मना है फिर देख लो वो दीवार दो चार दिन में पीकिया (पीक के) लाल रंग से ना रंग जाये तो बताना। ऐसे होता है बिना बताऐ टैलेंट का उपयोग। चलो फिर मुद्दे पर आ जाते हैं। भगवान राम ने जब रावण को मारा होगा तो उन्हें शायद कुछ बुरा भी लगा होगा कि ऐसे प्रकांड विद्वान का उनके द्वारा वध किया गया है तभी उन्होने भाई को रावण से ज्ञान लेने भेजा था पर रावण ने लक्ष्मण जी को एटीट्यूड दीखाते हुए ज्ञान लेने के भी नियम समझाये। इतने सालों बाद जब बच्चे मोबाइल लेकर मोटर साइकिल से स्कूल जाते हैं और गुरू को हाय सर, हाय मैम कहके स्माइल देते हैं तो रावण जैसे एटीट्यूड वाले गुरू से तो कह आते ‘व्हटएवर, आई डोंट केयर‘। ये प्रणाम व्रणाम हमसे नहीं हो पाता ‘ओ प्लीज‘। रावण जैसे गुरू ठीक ही समय पर चले गये वरना हर साल जलने के अलावा एक बेज्जती और जुड़ जाती। इस मेले के बहाने कुछ मजमूनुमां युवा, भीड़ में अपना भविष्य तलाशने तो कुछ ब्रांडेड बायफं्र्रेड अपनी महिला मित्रों के साथ समय बिताने का अवसर तलाषते हैं। जो भी है मेला सबके लिए हंसी खुशी का समय है सिवाय रावण के, जो षायद पुतले के भीतर से हमारी गतिविधियो देख के सोच रहा हो आखिर मुझमें और इनमें क्या अंतर है। जो अपराध मैं अपनी सोने की लंका में हजारों साल पहले भी नहीं कर सका आज इस समाज में हो रहे है, फिर भी हर साल जलाया मुझे ही जाता है। यू0पी0 के रावण को इस साल एक चिंता और खाये जा रही थी कि योगी जी ये घोषणा न कर दें की आज से तुम्हारा नाम ‘अलां फलां‘। तब कुम्भकर्ण ने रावण के कान में कहा कि ‘भैया चिंता ना करो तुम्हारा नाम बदल कर किसी महापुरूश पर तो रखेंगे नहीं, और हमसे पुराने नाम उनको ढूंढ कर भी मिलने से रहे। वैसे भ्राता हजारों साल बाद फिर नामकरण का सोच कर एक बार तो मैं भी डर ही गया था, हाहाहा।‘ कुम्भकर्ण की सांत्वना के बाद रावण चैन से जलने लगा। मुझे लगा जैसे जलते जलते वो फिर भी बोले जा रहा था कि ‘मैंने तो अपने देश को वैभव से भर दिया था, यज्ञ, तप और भक्ति से ज्ञान भी अर्जित किया था, एक अपहरण की गलती की सजा में अब तक मुझे जला रहे हैं पर अब सिर्फ एक दिन के ही सामाचारों को देख लो तो लगने लगता है कि मैं तो बहुत छोटा आदमी हो गया हूं। जब देश में नवजात बच्ची और 100 साल की वृद्ध महिलाओं की अस्मिता भी सुरक्षित नहीं है, परिवार के भीतर भी महिलाओं को सुरक्षा का एहसास नहीं है, तब क्या अभी भी मुझे ही बुराई मान के जलाते रहोगे, थोड़ा जान तो लो कि बिना अनुमति के महिला को स्पर्श तो बुराई के प्रतीक यानी मैंने भी नहीं किया था। कुछ तो अपडेट हो जाओ भाई। खुद पर भी गौर कर लो एक बार।‘ शायद रावण भी ठीक ही कहा था, लगा कि वो कुछ और भी कहना चाहता था पर अब विदा लेने का समय हो गया था, क्योंकी अब वो भीतर से भी जलने लगा था।
दिग्विजय सिंह जनौटी
दशहरा का माहौल है हर तरफ जै जै श्री राम के भजनों की गूंज है। पुतला दहन के कार्यक्रम से पहले ही खूब शोर शराबा चला है। पटाखे चलने अभी शुरू नहीं हुए हैं पर तैयारी जारी है। अभी थोड़ी देर में इतने सारे पटाखे जलाये जायेंगे जितने हमने शायद अपने जीवन की कुल दिवालियों में मिलाकर भी नहीं जलाये होंगे। जलते पटाखेें के बीच रावण का अंत देखने का मजा ही कुछ और है। दूसरे व्यक्ति के अवगुणों से तो हम वैसे ही बहुत नफरत करते हैं हर अवगुणी व्यक्ति हमारे लिए रावण समान है, अपने अवगुणों को अपनी आदत बता कर एडजस्ट कर लेने की कला भी हमने सीख ली है, पर दुसरों की बुराइयां हम बिल्कुल नहीं बखशते, 10-20 लोगों के सामने बुराई ना बताई तो ये बुराई भी कोई बुराई हुई भला। फिर रावण तो बुराइयों का प्रतीक जो ठैरा। उसे तो भस्म करना जरूरी है। राम जी की कृपा से मैदान में बैठने की थोड़ी जगह मिल गई क्योंकी भीड़ अभी पहुंचनी शुरू हुई है। अभी मेला मैदान को आगंतुकों द्वारा बिस्कुट, नमकीन, चिप्स के खाली रैपर और पानी की खाली बोतलों से जल्द से जल्द कुडेदान बना देने की प्रक्रिया युद्धस्तर से जारी है, पटाखों के चिथड़े कूड़े के ऊपर अंत में बिखेरे जायेंगे। अब अपना व्यस्त समय निकाल कर हम रावण दहन को आये हैं तो फोकस रावण पर ही करना चाहिये। उस रावण पर जो कि हजारों साल पहले मर चुका है पर जिसे हर साल हम बड़ी मेहनत करके फिर तैयार करते हैं ताकि उसके जलने का मजा हम फिर फिर लूट सकें। अपनी बनाई चीज के जलने और जलाने का आनंद इस मैदान के अलावा शायद ही कहीं और आता हो। वैसे इतना खर्चा पटाखों पर करने से अच्छा मुंह से ठांय ठांय करने वाली यू0पी0 पुलिस को मौका दे देते तो मुंह से ही सारे पटाखों की आवाज निकाल कर शमां बांध देते। खर्चा तो बचता ही प्रदूषण की भी कोई टेंशन नहीं रहती। इतने खर्चीले आयोजकों को कोई तो समझाओ भाई, ये तो यू0पी0 का सारा टेंलेंट ऐसे ही खतम करके ही मानेंगे। अब नगर निगम की होषियारीे ही देख लो जिस दीवार को रंग पुतवाना हो उस पर लिख देते हैं यहां थूकना मना है फिर देख लो वो दीवार दो चार दिन में पीकिया (पीक के) लाल रंग से ना रंग जाये तो बताना। ऐसे होता है बिना बताऐ टैलेंट का उपयोग। चलो फिर मुद्दे पर आ जाते हैं। भगवान राम ने जब रावण को मारा होगा तो उन्हें शायद कुछ बुरा भी लगा होगा कि ऐसे प्रकांड विद्वान का उनके द्वारा वध किया गया है तभी उन्होने भाई को रावण से ज्ञान लेने भेजा था पर रावण ने लक्ष्मण जी को एटीट्यूड दीखाते हुए ज्ञान लेने के भी नियम समझाये। इतने सालों बाद जब बच्चे मोबाइल लेकर मोटर साइकिल से स्कूल जाते हैं और गुरू को हाय सर, हाय मैम कहके स्माइल देते हैं तो रावण जैसे एटीट्यूड वाले गुरू से तो कह आते ‘व्हटएवर, आई डोंट केयर‘। ये प्रणाम व्रणाम हमसे नहीं हो पाता ‘ओ प्लीज‘। रावण जैसे गुरू ठीक ही समय पर चले गये वरना हर साल जलने के अलावा एक बेज्जती और जुड़ जाती। इस मेले के बहाने कुछ मजमूनुमां युवा, भीड़ में अपना भविष्य तलाशने तो कुछ ब्रांडेड बायफं्र्रेड अपनी महिला मित्रों के साथ समय बिताने का अवसर तलाषते हैं। जो भी है मेला सबके लिए हंसी खुशी का समय है सिवाय रावण के, जो षायद पुतले के भीतर से हमारी गतिविधियो देख के सोच रहा हो आखिर मुझमें और इनमें क्या अंतर है। जो अपराध मैं अपनी सोने की लंका में हजारों साल पहले भी नहीं कर सका आज इस समाज में हो रहे है, फिर भी हर साल जलाया मुझे ही जाता है। यू0पी0 के रावण को इस साल एक चिंता और खाये जा रही थी कि योगी जी ये घोषणा न कर दें की आज से तुम्हारा नाम ‘अलां फलां‘। तब कुम्भकर्ण ने रावण के कान में कहा कि ‘भैया चिंता ना करो तुम्हारा नाम बदल कर किसी महापुरूश पर तो रखेंगे नहीं, और हमसे पुराने नाम उनको ढूंढ कर भी मिलने से रहे। वैसे भ्राता हजारों साल बाद फिर नामकरण का सोच कर एक बार तो मैं भी डर ही गया था, हाहाहा।‘ कुम्भकर्ण की सांत्वना के बाद रावण चैन से जलने लगा। मुझे लगा जैसे जलते जलते वो फिर भी बोले जा रहा था कि ‘मैंने तो अपने देश को वैभव से भर दिया था, यज्ञ, तप और भक्ति से ज्ञान भी अर्जित किया था, एक अपहरण की गलती की सजा में अब तक मुझे जला रहे हैं पर अब सिर्फ एक दिन के ही सामाचारों को देख लो तो लगने लगता है कि मैं तो बहुत छोटा आदमी हो गया हूं। जब देश में नवजात बच्ची और 100 साल की वृद्ध महिलाओं की अस्मिता भी सुरक्षित नहीं है, परिवार के भीतर भी महिलाओं को सुरक्षा का एहसास नहीं है, तब क्या अभी भी मुझे ही बुराई मान के जलाते रहोगे, थोड़ा जान तो लो कि बिना अनुमति के महिला को स्पर्श तो बुराई के प्रतीक यानी मैंने भी नहीं किया था। कुछ तो अपडेट हो जाओ भाई। खुद पर भी गौर कर लो एक बार।‘ शायद रावण भी ठीक ही कहा था, लगा कि वो कुछ और भी कहना चाहता था पर अब विदा लेने का समय हो गया था, क्योंकी अब वो भीतर से भी जलने लगा था।
दिग्विजय सिंह जनौटी
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