पिता के पद पुत्रों के नाम नेहरू जी जब कारागार में बंद थे तो उनके औ र इंदिरा जी के मध्य पत्राचार को संकलित कर ‘पिता के पत्र पुत्री के नाम‘ से एक पुस्तिका तैयार की गई थी। ये ज्ञान एक विरासत था पुत्री को अपने पिता के द्वारा। एक हम लोग हैं आम आदमी, क्या देके जाते हैं अपनी औलादों को विरासत में पुराना स्कूटर, पटखाट, बर्तन चूल्हा और थोड़ा बहुत अपने ऊपर का लोन। अब वो बेचारी औलादें इस वसीयत पर खुशी जाहिर करें या गम ये भी धर्मसंकट रहता है। अपने कर्मों पर तो हमारा सिर शर्म से तब से घुटनों में घुस जाता है जब बच्चों के साथ समाचार देख रहे हों और ब्रेकिंग खबर आ जाये की बेटे को ये पद या चुनाव टिकट नहीं मिलने पर वरिश्ठ एवं दिग्गज नेता ने पार्टी को ठोकर मार दी। बच्चे हमारी तरफ कलयुगी रिश्ते की नजरों से देखते हुए नजरों से ही कह डालते हैं- अभी भी कुछ शरम बाकी है आपमें। बाप का फर्ज इनसे सीखो। ये एक खबर हमारे ब...