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Showing posts from September, 2017
                                      आओ कभी गुफाओं में   हर युग में भगवान पाप का भार बढ़ जाने पर उसके नाश के लिए अवतार लेते रहे हैं पर पाप का नाश करने के लिए पाप का बढना भी जरूरी है। अगर हर आदमी रोज सुबह आॅफिस या काम को जाये और शाम को घर आके टीवी पे बैठ जाये तो खाक पाप बढेगा और ऐसे निष्क्रिय लोगों के भरोसे बैठे रहें फिर तो हो गया भगवान का अवतार। भगवान के अवतरण होने में आनी वाली इन्ही समस्याओं के चलते ही कलियुगी बाबा लोगों ने ये जिम्मेदारी अपने सर पर उठा ली है कि भगवान के अवतरण के लिए माहौल वे लोग स्वयं तैयार कर के देंगे। हम अज्ञानी लोग समझ नहीं पा रहे हैं पर कलयुग में अपने को भगवान का अवतार बताने वाले ये बाबा जी लोग भगवान को अवतरित करने के प्रयास में ही लगे हैं, क्योंकि जब तक त्राहीमाम् ना हो भगवान धरती पर आके मारेंगे और तारेंगे किसको, ऐसे ही किसी को मार देने पर तो धारा 302 भी लग सकती है भगवान पर। कुछ तो हो भगवान के करने के लिए धरती पर। अगर त्रेता में रावण और बाकी राक्षस नहीं होते...
डूबते गांव, बचता हिमालय  मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे घर से स्वच्छ धवल हिमशिखर नंदादेवी, त्रिशूल, पंचाचूली समेत काफी विस्तृत हिमश्रृंखला का बहुत सुंदर दृश्य दिखता है। इतना सुंदर कि कभी कभी लगता है जैसे प्रकृति द्वारा एक बड़ा सा वॉलपेपर लगाया गया हो। कभी-कभी जाड़ों में घंटो इसे देखता रहता हूं। पर जब मैंने पिछले कुछ दिनों में सरकार द्वारा बड़े बड़े कार्यक्रमों में हिमालय को बचाने की शपथ लेते हुए और देते हुए देखा तो यूं ही ख्याल आया कि क्या हिमालय सिर्फ बर्फ का एक पहाड़ है जिसे हमने बचा  लेना है। क्या ये नदियां, यह गांव, ये जंगल हिमालय का हिस्सा नहीं है क्या यहां की संस्कृति यहां की सभ्यता हिमालय का हिस्सा नहीं है। क्या इन सब से अलग होकर हिमालय अपना अर्थ नहीं खो देता। क्या ये हिमालय हम लोगों का घर हमारा आश्रय हमारा पर्यावरण नहीं है। आज हम इसी हिमालयी पर्यावरण से खिलवाड़ करते हुए जनता में चर्चा पाने के लिए इसे ही बचाने की शपथ भी लेते जा रहे हैं। जहां एक ओर विकास के नाम पर भारत के 120 वर्ग किमी क्षेत्र में स्थित 134 हिमालयी गांव को डुबा कर क्षेत्र की लगभग 33000 की आबादी को यहां से पलायन क...