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                                    आओ कभी गुफाओं में 

 हर युग में भगवान पाप का भार बढ़ जाने पर उसके नाश के लिए अवतार लेते रहे हैं पर पाप का नाश करने के लिए पाप का बढना भी जरूरी है। अगर हर आदमी रोज सुबह आॅफिस या काम को जाये और शाम को घर आके टीवी पे बैठ जाये तो खाक पाप बढेगा और ऐसे निष्क्रिय लोगों के भरोसे बैठे रहें फिर तो हो गया भगवान का अवतार। भगवान के अवतरण होने में आनी वाली इन्ही समस्याओं के चलते ही कलियुगी बाबा लोगों ने ये जिम्मेदारी अपने सर पर उठा ली है कि भगवान के अवतरण के लिए माहौल वे लोग स्वयं तैयार कर के देंगे। हम अज्ञानी लोग समझ नहीं पा रहे हैं पर कलयुग में अपने को भगवान का अवतार बताने वाले ये बाबा जी लोग भगवान को अवतरित करने के प्रयास में ही लगे हैं, क्योंकि जब तक त्राहीमाम् ना हो भगवान धरती पर आके मारेंगे और तारेंगे किसको, ऐसे ही किसी को मार देने पर तो धारा 302 भी लग सकती है भगवान पर। कुछ तो हो भगवान के करने के लिए धरती पर। अगर त्रेता में रावण और बाकी राक्षस नहीं होते तो भगवान राम अवतार लेकर किस को मारते। अगर कंस का साम्राज्य द्वापर युग में नहीं होता तो कृष्ण अवतार लेकर क्या करते, माखन खा कर गाय बकरी चराते रहते। तो मतलब यह भी हो सकता है भगवान द्वारा बाबाजी लोगों को माहौल बनाने के लिए भेजा गया हो।
 अब हम राम रहीम की फिल्में देखकर यह मान लें कि बाबा भगवान बन गए हैं तो इसमें बाबा का क्या दोष। वैसे हम लोग तो है ही भोले भाले नाटक में देवी देवताओं का किरदार निभाने वालों को भी कहीं दिख जाने पर हाथ पैर जोड़ देते हैं या पैर छू लेते हैं। जमाना तो शोबिजनेस का ही है, चश्मा भले ही 100 रू0 का हो पर ‘रे बैन‘ लिखा होना चाहिए, इससे स्टेटस बना रहता है। देखने वाला कौन सा चश्मे का पारखी है। वैसे ही बाबाओं का हाल भी है, अंदर झांक कर हम किसी व्यक्ति की इंसानियत तो जान नहीं सकते। बाबा वाला रूप धरकर थोड़ा मालाऐं, तिलक, रुद्राक्ष और भगवा कपड़े पहन कर थोड़ा प्रवचन वाला नाच गाना देखा और हम हो भक्त। फिर बाबा जी के चरणों की धूल और हमारा सिर। बाबा ने कहा बच्चा परेशानी में हो तो बाबा भये अंतर्यामी। जहांँ 99 प्रतिशत लोग समस्याओं से ग्रस्त हैं और बाकी 1 प्रतिशत लोग पता नहीं कौन हैं, वहां ये जुमला ‘बेटा परेशान हो, बाबा सब ठीक कर देंगे‘ तो रामबाण जैसा ही है। फिर बाबा के दिये आशीर्वाद रूपी टोटके लेते ही अंधे को आंख और निर्धन को माया। चमत्कार ही चमत्कार। चमत्कार को बताने वाले पहले से मौजूद उनके कर्मचारी भक्त। फिर चमत्कार के बाद जो घर बैठे इनके प्रवचन सुन लिये तो ठीक वरना मोक्ष के द्वार पर तो इन फर्जी बाबाओं ने स्वर्ण भस्म और कई औषधियों के ताले लगा रखे हैं जिनकी चाबियां सिर्फ इनकी गुफाओं और रहस्यमयी कमरों में खुलती हैं। इन रहस्यमयी कमरों में ज्ञान तो पता नहीं कितने भक्तों को मिला पर कुछ कमरों का ज्ञान अब दुनिया के सामने धीरे धीरे खुल रहा है।
 एक बार राज खुलते ही पहले बाबाजी से मोटे पैसे लेकर अपने चैनलों में गुणगान और रोज प्रवचन प्रसारित करने वाले चैनल ही बाबाजी की प्याज जैसी परत दर परत उतारते जाते हैं। ऐसे या वैसे, टीआरपी बढनी चाहिऐ बस।
धर्म को भी सरकारी विभाग जैसा बना दिया गया है। धर्म की इन संत वेशधारी ढोंगी बाबाओं से रक्षा के लिए इन्हें ब्लैक लिस्ट भी किया जा रहा है। हर बार चुनावों में अलग अलग पार्टियों को पूरा समर्थन देकर जिताने में योगदान देने वाले ये डेरे, धार्मिक समूह आदि अपने भक्तों अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं से सिर्फ खेलते ही रहते हैं। ये हमारी भगवान के प्रति भक्ति नहीं हमारा डर हैं जो हमें इन बाबाओं के द्वार पर लाकर हमें इनकी अंधभक्ति करने को मजबूर करता है। भक्ति में डर नहीं सिर्फ श्रृ़द्धा होती है। और भले काम करने और भगवान का नाम लेने के लिए लोगों के झुण्ड की जरूरत नहीं होती। जरूरत तो खुद को बदलने की है नहीं तो बाबाओं की कोई कमी है क्या, एक को जेल डालो तो भक्त किसी और को ढूंढ लेंगे चरण वंदन के लिए। अरबों की सम्पत्ति वाले ये शाकाहारी, मांसाहारी, फलाहारी, दुराचारी, व्यापारी सारे किस्म के बाबा गृहत्यागी और माया से दूर रहने वाले हुए। इन्हे चाहिए मोक्ष। बिना शहद चाटेे मोक्ष कहाँ मिलता है और ‘मनी है तो हनी है‘, फिर चाहे वो पतंजलि हनी हो हनीप्रीत। आपकी और हमारी ही नहीं बाबाजी लोगों की भी अपनी समस्याऐं हैं और इनकी समस्याओं को नजदीक से जानना हो तो आओ कभी इनकी गुफाओं में।

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