तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे
जब उत्तराखण्ड की राज्य सरकारें अपनी वर्तमान कार्यप्रणाली के साथ नशामुक्त उत्तराखण्ड का नारा देती हैं तो उतनी ही हंसी आ जाती है जितनी कभी कभी कपिल शर्मा की कामेडी देखकर आ जाती थी। शराब का विरोध कर रही जनता को पिटवाकर और केस लगवाकर उनके गांवों में जबरन शराब की दुकानें खोलने वाली सरकार ने अपनी छवि साफ करने का निर्णय लिया हैं, पर इससे भी ज्यादा हास्यास्पद बात ये है कि उत्तराखण्ड में नशामुक्ति के ब्राण्ड एम्बेस्डर बनाये जाने के लिए जिन्हे चुना गया है वो हैं अपनी फिल्मों को धुंए और शराब
से भर देने वाले संजय दत्त उर्फ संजू बाबा। अगर उनसे ये सरकार शराब का विज्ञापन करवा लेती तो ज्यादा राजस्व हासिल करने में सुविधा होती। भांग की खेती को बढावा देने के सम्बन्ध में भी संजू बाबा का प्रचार काम में लाया जा सकता था परन्तु दुर्भाग्य है कि इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति का उत्तराखण्ड सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है। सही बंदे गलत धंधे के तर्ज पर इस नशामुक्ति अभियान के विज्ञापनों के बाद कितने और नशेड़ी तैयार होंगे इसकी जांच के लिए भी एक कमेटी बनाए दी जाये। इसके साथ ही अन्य भी कई क्षेत्रों में हमें ब्राण्ड एम्बेस्डर्स की आवश्यकता है। इसी क्रम में लगे हाथों सलमान खान को रोड सेफ्टी और वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन, आशाराम को चाइल्ड प्रोटेक्शन, राम रहीम को महिला सुरक्षा, अकबरूद्दीन ओवैसी को सामाजिक सौहार्द, ढिनचैक पूजा को लोक संगीत आदि के सम्बन्ध में जनजागरूकता हेतु ब्रान्ड एम्बेसडर बनाया जा सकता है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध चाय के विज्ञापन के लिए ‘हैलो फ्रैंड्स, चाय पीलो‘ वाली यूट्यूबर महिला से भी सम्पर्क किया जा सकता है। वैसे उस महिला से सम्पर्क स्थापित करने के लिए उसकी खोजबीन जारी है। प्रियंका चोपड़ा ने भी इस बीच अपने से 12 साल छोटे बच्चे से शादी करने का निर्णय लेकर, अपने आप को बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया है। ऐसे समय में विजय माल्या की कमी बड़ी खल रही है वरना संजय दत्त के साथ विजय माल्या की जोड़ी जब नशामुक्ति के लिए कहती तो विज्ञापन देखने लायक होता। आजकल न्यूज चैनल में विज्ञापन और समाचार दोनों ही मनोरंजन से भरपूर हो चुके है। फिल्म देखने बैठो तो 3 घंटे तो गुजर जाते हैं, मगर इससे ज्यादा मनोरंजन के लिए अब लोगों में न्यूज चैनल्स पर ज्यादा निर्भरता देखने को मिल रही है। दो चार दिन तो ये चैनल राहुल गांधी ने वेज खाया या नाॅनवेज ये जानने में ही निकाल देते हैं। सामाजिक मुद्दों से जुड़ी इस बड़ी खबर पर 2-2 दिन तक डिबेट चल जाता है। इन स्वघोषित जज बने चीखते चिल्लाते एंकरों की अगर चलती तो ये जूठी प्लेट और टेबल को फाॅरेंसिक जांच के लिए भिजवा देते।
गोबर में कोहिनूर, बतख से आॅक्सीजन, महाभारत में इंटरनेट, नाली से चूल्हे की गैस निकलने जैसी बातें सिर्फ इन न्यूज चैनल्स की डिबेट और महान वैज्ञानिको से सुसज्जित मंत्रिमंडल के कारण ही 70 साल बाद हमारे सामने आ सकी हैं। 70 साल बाद मितरों 70 साल बाद, हमें ये सब पता चल रहा है। पिछली सरकारों में जाने कितने कोहीनूर, कितनी आॅक्सीजन और चूल्हे की गैस जैसी बहुमूल्य चीजें यूं ही बर्बाद होती रही क्यंूकी हम गोबर, नाली और बतख आदि की अहमियत ही नहीं समझ सके। तेल की बढती कीमतो से भी आप घबरायें नहीं जल्दी ही उसका भी कोई 70 साल से छिपा हुआ स्त्रोत मिल ही जायेगा। इतने वैज्ञानिक देश ने एक साथ किसी भी मंत्रीमंडल में नहीं देखे होंगे। एक और वैज्ञानिक मंत्री जी ने तो जीवविज्ञान के प्रमुख डार्विन के सिद्धान्त को बेकनाब कर दिया है। कोई माने या माने पर, ये सब बताने के लिए भी हिम्मत तो चाहिये ही होती है और ये वैज्ञानिक सिद्ध करते रहते हैं कि ज्ञान की काई सीमा नहीं होती है और ना ही वैज्ञानिक बनने के लिए किसी डिग्री की। आपको चाहिये तो बस पद और आत्मविश्वास। बढता हुआ कोटा, सामान्य वर्ग का नोटा और अटल जी की अस्थियों का लोटा कुछ दिनों इंटरनेट पर खूब घूम रहे हैं, उम्मीद है उचित समय पर सभी अपने सही मुकाम पर पंहुच जायेंगे।
दिग्विजय सिंह जनौटी
जब उत्तराखण्ड की राज्य सरकारें अपनी वर्तमान कार्यप्रणाली के साथ नशामुक्त उत्तराखण्ड का नारा देती हैं तो उतनी ही हंसी आ जाती है जितनी कभी कभी कपिल शर्मा की कामेडी देखकर आ जाती थी। शराब का विरोध कर रही जनता को पिटवाकर और केस लगवाकर उनके गांवों में जबरन शराब की दुकानें खोलने वाली सरकार ने अपनी छवि साफ करने का निर्णय लिया हैं, पर इससे भी ज्यादा हास्यास्पद बात ये है कि उत्तराखण्ड में नशामुक्ति के ब्राण्ड एम्बेस्डर बनाये जाने के लिए जिन्हे चुना गया है वो हैं अपनी फिल्मों को धुंए और शराब
से भर देने वाले संजय दत्त उर्फ संजू बाबा। अगर उनसे ये सरकार शराब का विज्ञापन करवा लेती तो ज्यादा राजस्व हासिल करने में सुविधा होती। भांग की खेती को बढावा देने के सम्बन्ध में भी संजू बाबा का प्रचार काम में लाया जा सकता था परन्तु दुर्भाग्य है कि इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति का उत्तराखण्ड सरकार द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है। सही बंदे गलत धंधे के तर्ज पर इस नशामुक्ति अभियान के विज्ञापनों के बाद कितने और नशेड़ी तैयार होंगे इसकी जांच के लिए भी एक कमेटी बनाए दी जाये। इसके साथ ही अन्य भी कई क्षेत्रों में हमें ब्राण्ड एम्बेस्डर्स की आवश्यकता है। इसी क्रम में लगे हाथों सलमान खान को रोड सेफ्टी और वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन, आशाराम को चाइल्ड प्रोटेक्शन, राम रहीम को महिला सुरक्षा, अकबरूद्दीन ओवैसी को सामाजिक सौहार्द, ढिनचैक पूजा को लोक संगीत आदि के सम्बन्ध में जनजागरूकता हेतु ब्रान्ड एम्बेसडर बनाया जा सकता है। इसी क्रम में उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध चाय के विज्ञापन के लिए ‘हैलो फ्रैंड्स, चाय पीलो‘ वाली यूट्यूबर महिला से भी सम्पर्क किया जा सकता है। वैसे उस महिला से सम्पर्क स्थापित करने के लिए उसकी खोजबीन जारी है। प्रियंका चोपड़ा ने भी इस बीच अपने से 12 साल छोटे बच्चे से शादी करने का निर्णय लेकर, अपने आप को बच्चों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया है। ऐसे समय में विजय माल्या की कमी बड़ी खल रही है वरना संजय दत्त के साथ विजय माल्या की जोड़ी जब नशामुक्ति के लिए कहती तो विज्ञापन देखने लायक होता। आजकल न्यूज चैनल में विज्ञापन और समाचार दोनों ही मनोरंजन से भरपूर हो चुके है। फिल्म देखने बैठो तो 3 घंटे तो गुजर जाते हैं, मगर इससे ज्यादा मनोरंजन के लिए अब लोगों में न्यूज चैनल्स पर ज्यादा निर्भरता देखने को मिल रही है। दो चार दिन तो ये चैनल राहुल गांधी ने वेज खाया या नाॅनवेज ये जानने में ही निकाल देते हैं। सामाजिक मुद्दों से जुड़ी इस बड़ी खबर पर 2-2 दिन तक डिबेट चल जाता है। इन स्वघोषित जज बने चीखते चिल्लाते एंकरों की अगर चलती तो ये जूठी प्लेट और टेबल को फाॅरेंसिक जांच के लिए भिजवा देते।
गोबर में कोहिनूर, बतख से आॅक्सीजन, महाभारत में इंटरनेट, नाली से चूल्हे की गैस निकलने जैसी बातें सिर्फ इन न्यूज चैनल्स की डिबेट और महान वैज्ञानिको से सुसज्जित मंत्रिमंडल के कारण ही 70 साल बाद हमारे सामने आ सकी हैं। 70 साल बाद मितरों 70 साल बाद, हमें ये सब पता चल रहा है। पिछली सरकारों में जाने कितने कोहीनूर, कितनी आॅक्सीजन और चूल्हे की गैस जैसी बहुमूल्य चीजें यूं ही बर्बाद होती रही क्यंूकी हम गोबर, नाली और बतख आदि की अहमियत ही नहीं समझ सके। तेल की बढती कीमतो से भी आप घबरायें नहीं जल्दी ही उसका भी कोई 70 साल से छिपा हुआ स्त्रोत मिल ही जायेगा। इतने वैज्ञानिक देश ने एक साथ किसी भी मंत्रीमंडल में नहीं देखे होंगे। एक और वैज्ञानिक मंत्री जी ने तो जीवविज्ञान के प्रमुख डार्विन के सिद्धान्त को बेकनाब कर दिया है। कोई माने या माने पर, ये सब बताने के लिए भी हिम्मत तो चाहिये ही होती है और ये वैज्ञानिक सिद्ध करते रहते हैं कि ज्ञान की काई सीमा नहीं होती है और ना ही वैज्ञानिक बनने के लिए किसी डिग्री की। आपको चाहिये तो बस पद और आत्मविश्वास। बढता हुआ कोटा, सामान्य वर्ग का नोटा और अटल जी की अस्थियों का लोटा कुछ दिनों इंटरनेट पर खूब घूम रहे हैं, उम्मीद है उचित समय पर सभी अपने सही मुकाम पर पंहुच जायेंगे।
दिग्विजय सिंह जनौटी
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